Wednesday, September 17, 2008

बाबु लेड़गा रे

डाँ निरूपमा शर्मा के ये कविता ल कब अव कइसे लिखिस ते घटना बडा दिलचस्प हे । डा निरूपमा शर्मा ह एक बार आकाशवाणी के कवि सम्मेलन मे रामेश्वर वैष्णव जी के कविता सुनीस जेकर शीर्षक रीहिस " नोनी बेँदरी " । ये कविता ल सुनके निरूपमा वर्मा जी ल ये कविता ह लडकी मन के अपमान लगिस अव ये कविता के जवाब दे बर " बाबु लेडगा" लिख डरेस । डा निरूपमा वर्मा के कहना हे कि इहीँचे से मोर मँच स्तर के छतीसगढी कविता लिखे के शुरूवात करेँव ।



बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा
रद्दा बताथँव मे , तोला चेताथँव ,
घेरी-बेरी चलथस ते टेड़गा, टेडगा, टेड़गा
बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा

भलवा असन ते चुँदी बढ़ायेस, नोंनी घलो मन ल ते लजायेस
छिटही –बुँदही के पोलखा पहिर के, बनके बेँदरा गली मे ते नाचे
नवा बटम के लँहगा ल पहिरे , माते झुमे जैसे खेड़हा, खेड़हा, खेड़हा
बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा

कतको बनले सम्हर ले तै छोकरा, ठकुर दइया के छुट्टा तै बोकरा
जिनिस –जिनिस के खाये तभोले, कोरी तीन के दिखतस ते डोकरा
कुकुर ह अपन पुछी ल सहराथे, जब रइँहय तब रइँहय टेड़गा टेड़गा टेड़गा
बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा

कभु अपन ल धर्मेद्न कैथस, कभी बोली अमजद के बोलथस
बिन बुता के गली मे किजरथस, दाइ बहनी ल निटोरत रइथस
सँझा बिहानिया ते रँग ल बदलथस, जैसे बदलथे ग टेटका टेटका टेटका
बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा

कब सुरूज असन ते चमकबे, दाइ बहिनी के मान ल बढाबे
घर आदमी के मन मे बनाबे, बनके मया अजोँर छरियाबे
सबके करमनार बर ते ह बनजा , बिन मुर जर के गा ड़ेखरा डेखरा डेखरा
बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा
रद्दा बताथँव मे , तोला चेताथव मे, घेरी-बेरी चलथस ते टेड़गा, टेडगा, टेड़गा
बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा

कवियित्री : डा निरुपमा शर्मा

5 comments:

दीपक said...

हा हा हा !! बने हे फ़ेर मोर चूदी नै बाढे हे !!

Sanjeet Tripathi said...

तैं ह कब ब्लॉग बना लेस गा, बताय घलोक नहीं
गलत बात हरे न।

गुरतुर गोठ said...

बडा सुन्‍दर नाम हे युवराज भाई ।

devlal thakur देवलाल ठाकुर said...

सुघ्घर लागिस हे ग आप्के ब्लोग ह ,

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बने लागिस युवराज भाई आपमन से मिलके।
जोहार ले