Thursday, March 27, 2014

अगला प्रधान-मंत्री नरेंद्र मोदी ही होगा |

आज देश को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो देश को एक प्रभावी नेतृत्व दे सके, जिसके पास निर्णय लेने की क्षमता हो, जिसके पास दूरदर्शिता हो, जिसके पास कुछ कर दिखाने की क्षमता हो, जो आलोचनाओं से घबराता ना हो, जो आलोचनाओ की परवाह किए बिना अपना काम प्रभावी तरीके से कर सकता हो, जिसको ये पता हो किस समय मे कौन सा निर्णय लेना है, जो देशवासियों के अंदर उत्साह जगा सके | आज के वर्तमान राजनिती मे नरेंद्र मोदी ही ऐसे व्यक्ति है जो देश को एक सबल नेतृत्व प्रदान कर सकते है, देश को आगे बढ़ाने की क्षमता अगर किसी मे है तो वो केवल नरेंद्र मोदी मे है |
आज जो वर्तमान परिस्थिती दिखाई दे रही है वो स्पष्ट रूप से इंगित कर रही है की देश का अगला प्रधान-मंत्री नरेंद्र मोदी ही होगा | नरेंद्र मोदी के आस-पास अभी कोई दिखाई नही देता |  कल उधमपूर ( जम्मू काशमीर ) मे  नरेंद्र मोदी के विजय शॅखनाद रैली से इसकी शुरूवात हो चुकी है | इस रैली मे उसने तीन एके ( एके-47 , एके-0 और एके-49 ) वाले पाकिस्तानी अजेंटों के बारे मे बारे मे बता कर मोदी ने ये बता दिया है कि विरोधियो को कब और कहाँ चित्त किया जाता है |
जब से  नरेंद्र मोदी को प्रधान-मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है तब से भाजपा के विजय का ग्राफ निरंतर आगे बढ़ता दिख रहा है | भारतीय मीडिया मे अगर आज किसी बात पे चर्चा होती है तो वो केवल नरेंद्र मोदी के उपर है | नरेंद्र मोदी के बिसाए हुए बिसात पर सभी लोग फंसते जा रहे है |  नरेंद्र मोदी के विरोधी ये सोचते है की वो नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोल कर उसके विजय रथ को रोक रहे है, लेकिन उन्हे ये बात समझ मे नही आती है वो उसी राह मे चल रहे है जिधर उसे नरेंद्र मोदी ले जाना चाहता है | एजेण्डा भी मोदी का होता है और चर्चा भी मोदी का होता है और अंतिम निशकर्ष भी मोदी का ही होता है, लोग तो बस उस रास्ते पे चलते जाते है |  बीच मे ये उम्मीद जरूर थी कि कांग्रेस वालो का चुनाव प्रचार थोड़ा ज़ोर पकड़ेगा लेकिन पिछले दिनों के हालात ये बताते है की अभी मोदी के वियय रथ को रोकने वाला कोई भी आस-पास  नही  है | लगता है की कांग्रेस थक चुकी है और पूरा मैदान नरेंद्र मोदी के लिए छोड रखा है | वो तो भला हो एके-49 का जो कुछ विरोध प्रदर्शन करके लोगो का मनोरंजन कर रहे है | लोग इन प्रदर्शनो का फिल्मों मे होने वाले आईटम-सांग की तरह मज़ा लेते है | और पढ़ने मे तो यहाँ तक आया है की पिछले दो दिनों मे इस आईटम-सांग के उपर पैसे भी बहुत   बरस रहे है, बिलकूल फिल्मों की तरह , जितना ज्यादा अंग- प्रदर्शन उताना ही ज्यादा दर्शक  पैसा फेकने लगते है | 
सारे सर्वे , देशी मीडिया और विदेशी  मीडिया वालो मे एक आम सहमती है की इस चुनाव मे सबसे बड़ा  दल भाजपा होने वाला है | शुरू मे कुछ संशय था की भाजपा सरकार बना पाएगी या नहीं लेकिन पिछले दो हफते के हालत बताते है की अगला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलवा और कोई दूसरा हो ही नाही सकता |  अभी सवाल केवल ये है की अगली सरकार कितनी मजबूत होगी जो की इस बात पर निर्भर  करता है की भाजपा को कितनी सीटें मिलती है | भाजपा को जितनी ज्यादा सीटें मिलगी उतना ही मजबूत सरकार होगा और जितनी कम मिलेगी उतनी ही मजबूती कम होगी | सारे ओपिनियन पोल के आंकड़ो  के सबसे निरशाजनक परिणाम को भी अगर ले तो इसमे भाजपा को 180 सीटें मिल रही है | इस परिस्थिती मे भी सरकार भाजपा की हो होगी, राम विलास अपासवान की तरह बाँकी दलों को सहयोग करने मे कोई  परेशानी  नाही होगा | इसका आधार ये है की  नरेंद्र मोदी के उम्मीदवार घोषित करने के पहले सारे राजनीतिक पंडित और विपक्षी दल केवल ये बात करते थे कि नरेंद्र मोदी के उम्मीदवारी से कोई भाजपा के साथ नही जाएगी, और लोगो को भी इन बातो मे थोड़ा दम नजारा आता था,  लेकिन जैसे-जैसे देश चुनाव की तरफ बड़ रहा है वैसे वैसे ही ये बाते निर्मूल साबित हो रही है | इस स्थिती मे बस होगा इतना की ये सरकार उतनी प्रभाव पूर्ण तरीके से काम नही कर पाएगी जिसकी लोग अपेक्षा कर रहे है, नरेंद्र मोदी के क्षमताओ का पूरा उपयोग नही हो पाएगा लेकिन फिर भी वर्तमान सरकार से तो काम बहूंत अच्छा ही होगा | | इसलिए भाजपा के समर्थको का अभी केवल एक ही प्रयास  चल रहा है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा सीट लाये जिससे की नरेंद्र मोदी अपने पूरी क्षमता का उपयोग करके देश को उम्मीदों के रास्ते पर ले जा सके |
आज के लिए इतना काफी | नरेंद्र मोदी को  प्रधान-मंत्री बनाने के लिए मै  कोशीस करूंगा की इस चुनाव तक अपनी राय व्यकत करके , भाजपा के समर्थकों को उत्साहित करता रहूं ताकी भारत को एक सशक्त और प्रभावी नेतृत्व मिल सके |

     

Sunday, February 28, 2010

छत्तीसगढ़ के फाग गीत

सब सँगवारी मन ल होली तिहार के अब्बड़ अकन बधाई । मोर तरफ से आप मन के लिए होली के ये दु ठन गाना प्रस्तुत हे । नीचे  एक ठन दँडा गीत प्रस्तुत हे जेला होली के समय गाय जाथे । बचपन मे हमन हे ये होली के बिहान दिन दँडा नाच ले के दुसर गाँव मे घर -घर नाचे बर जावन । एक झन सियान ह माँदर बजाय अव बाँकी सब लइका मन ह दँडा ल धर के नाचन । घर - घर जाके ये  नाच देखाय मे जतका पइसा आय ओकर साँज किन पार्टी चले । पार्टी मे केवल मिर्चा भाजिया अव समोसा मिले लेकिन ओतकी खाय म जतका पार्टी के मजा आय तइसन मजा आजकल के फाइव स्टार के पार्टी मे नइ आय । खैर ये सब बात ल राहन दे फिलहाल ये ड़डा गीत ये जगा प्रस्तुत हाबे जेकर वजह से हमन ल साल मे एक बार भजिया अव समोसा के पार्टी मनायल मिले ।

बिना बल के जवान

बिना बल के जवान , बिना बल के जवान
फोरे न फूटे सुपलिया ।
कांहा ले मंगाबो रे चुना रे चुना रे चुना ।
कंहवा ले रे पान , कंहवा ले रे पान ।
कांहा ले मंगाबो रे रंड़ी रे रंडी रे रंड़ी ॥
कंहवा के जवान , कंहवा के जवान
फोरे न फूटे सुपलिया ।
बिना बल के जवान , बिना बल के जवान
फोरे न फूटे सुपलिया ।
होली है ...............

कटनी ले मंगाबो रे चुना रे चुना रे चुना ।
रायपुर ले रे पान , रायपुर ले रे पान ।
पटना ले मंगाबो रे रंड़ी रे रंडी रे रंड़ी ॥
धमतरी के जवान , धमतरी के जवान ।
फोरे न फूटे सुपलिया ।
बिना बल के जवान , बिना बल के जवान
फोरे न फूटे सुपलिया ।
होली है ............... 
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दँडा गीत

तोर अस जोड़ी हो ललना , मोरे अस जोड़ी
कबहू न गढ़े भगवान मोरे ललना ॥

कउन महीना म होही मंगनी अव बरनी ।
कउन महीना म होही मंगनी अव बरनी ।
मंगनी अव बरनी हो ललना , मंगनी अव बरनी ।
मंगनी अव बरनी हो ललना , मंगनी अव बरनी ।
कउन महीना मे बिहाव मोरे ललना ।

माँघ महीना म होही मंगनी अव बरनी ।
माँघ महीना म होही मंगनी अव बरनी ।
मंगनी अव बरनी हो ललना , मंगनी अव बरनी
मंगनी अव बरनी हो ललना , मंगनी अव बरनी
फागुन महीना मे बिहाव मोर ललना ॥

कोरवन पाइ–पाइ भँवर गिंजारे ।
कोरवन पाइ –पाइ भंवर गिंजारे ।
भँवर गिंजारे हो ललना , भँवर गिंजारे ।
पर्रा मे लगिंन लगाय मोरे ललना ॥

Monday, February 15, 2010

आप ही बताये कि क्या यही छत्तीसगढ़ का चुनाव स्टाइल है ?

कल मैने “द हिन्दू” अखबार मे छत्तीसगढ़ से सँबन्धित एक खबर पढ़ी जिसका शीर्षक था “ Compulsory voting, Chhattisgarh style”. ये अँग्रेजी का समाचार पत्र है अत: इसका शीर्षक अँग्रेजी मे था । अगर मै उसे अनुवाद करूँ तो इसका शीर्षक होगा “अनिवार्य मतदान, छत्तीसगढी तरीका” । मै शीर्षक पढ़कर उत्साहित हुआ कि इस खबर मे अनिवार्य मतदान के किसी नायाब तरीके के बारे मे बताया गया होगा । लेकिन जब इस समाचार को पढना शुरू किया तो पता चला कि ये एक चुनाव से सम्बन्धित समाचार है जिसमे बीजापूर के एक गाँव के पँचायत-चुनाव कि कहानी है जहाँ पर गाँव के कुछ लोगो को चुनाव मे हिस्सा न लेने पर पुलिस वालो द्वारा तथाकथित पिटाई की गयी थी । इस समाचार मे ये भी नही पता नही चला कि इन गाँव वालो से जबरदस्ती वोट डलवाया गया था कि नही । लेकिन मुझे ये बात समझ मे नही आयी कि इसमे अनिवार्य मतदान वाली कौन सी बात हो गयी। और क्या छत्तीसगढ़ के एक गाँव मे घटित किसी घटना को सँदर्भ देकर उसे छत्तीसगढ़ का स्टाइल कहा जा सकता है ? क्या इसे छत्तीसगढ़ मे अनिवार्य मतदान का तरीका करके प्रचारित किया जाना चाहिए ? मै इसे प्रचारित इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि इस समाचार को आधार बनाकर आगे ये बात दोहरायी जाएगी कि छत्तीसगढ़ मे पँचायत चुनाव मे ग़ाँव वालो की मर्जी नही चलती । छत्तीसगढ़ मे तो केवल पुलिस वालो की ही चलती है और वो जिस प्रत्याशी को चाहे उसे उसके पक्ष मे मतदान करवा सकते है । और हद कि सीमा तब पार होगी जब इस समचार को उस समाचार से जोड़ा जायेगा जिसमे ये कहा जायेगा कि छत्तीसगढ़ मे तो कानून नाम कि कोइ चीज ही नही है । और इस तरह के कुतर्को की दुनिया खडी हो भी रही है जिसमे कहा जा रहा है छत्तीसगढ़ मे सँविधान नाम कि कोइ चीज नही है । और ये सब बाते प्रचारित किया जा रहा है उन लोगो के द्वारा जिन्हे छत्तीसगढ़ के बारे या तो कुछ पता ही नही है या उन्हे केवल उतनी ही बाते पता है जितना अमन सेठी ( Author of Compulsory voting, Chhattisgarh style) जैसे लोगो ने बतायी है । हमे एतराज इस बात से नही है कि आप किसी विषेश मुद्दे को जन-समुदाय तक पहूँचाना चाहते है बल्कि तकलीफ इस बात से होती है कि इस एक प्रसँग को आगे रखकर ऐसे झूठ का पुतला खडा किया जाता है जो छत्तीसगढ़ से जितना दूर होते जाता है उस पूतले कि अटटाहस उतनी ही बढ़्ती जाती है । और एक समय ऐसा आता है जब इस पुतले कि अटटाहस मे झूठ का पुलिँदा पूरी तरह ढँक जाता है ।

अमन सेठी के इस लेख को पढने से केवल यही लगेगा कि ये तो एक साधारण रिपोर्टिँग है और ये तो हर पत्रकार का कर्तब्य है कि वो समाज मे होने वाली अच्छी-बुरी बातो को सबके सामने लाये । गूगल सर्च मे अमन सेठी के बारे मे सर्च करने से ये पता चल जायेगा कि वो किस तरह के पत्रकार है । मुझे उंसके बारे मे ज्यादा जानकारी नही है लेकिन गुगल सर्च (aman sethi Chhattisgarh) से जो बात सामने आयी वो ये कि अमन सेठी जी का रूची छत्तीसगढ़ के नक्सली समस्या के बारे मे है । अमन साहब की कोइ रिपोर्ट मैने छत्तीसगढ़ के चुनाव के मामले मे नही देखी । अगर अमन सेठी साहब छत्तीसगढ़ के चुनाव कि रिपोर्टिग नही करते है तो उन्हे छत्तीसगढ़ मे होने वाले पँचायत चुनाव के बारे मे कितनी जानकारी होगी उसका अँदाजा आप लगा सकते है । और इस अल्पज्ञान के आधार पर कोइ “छत्तीसगढ़ मे अनिवार्य मतदान के तरीके” पर कोइ कितना सही बात कह सकता है उसे साधारण पाठक भी समझ सकते हैँ । हो सकता है कुछ लोगो को इसमे बुराई नजर ना आती हो लेकिन जिस तरह से अमर सेठी ने इस लेख का टाइटल दिया है उससे तो यही लगता है कि सेठी साहब कि मानसिकता केवल छत्तीसगढ़ को बदनाम करने की है । या तो ये शीर्षक इस लेख के लिए अनुपयुक्त है या ये भी हो सकता है कि अमन सेठी अपने समचार मे वजन डालने के लिए ही इस शीर्षक का उपयोग किया हो । लेकिन दोनो ही परिपेक्ष मे एक आम छत्तीसगढिया का आहत होना स्वाभाविक है । ऐसा लगता तो नही कि इतने नामी-गिरामी पत्रकार ने बिना वजह से ऐसे शीर्षक का चुनाव किया हो । तो क्या अपने लेख मे वजन डालने के लिए ही किसी को छत्तीसगढ़ के बारे मे भ्रमित जानकारी देने की स्वतँत्रता होनी चाहिए? छत्तीसगढ़ को बदनाम करने का सवाल इसलिए भी पैदा होता है क्योँकि छत्तीसगढ़ के चुनाव मे कई अभूतपुर्व चीजेँ भी हुई है , लेकिन इन अभूतपुर्व चीजोँ के बारे मे शायद अमन सेठी जैसे लोग देखना नही चाहते या फिर जानबूझकर इसके बारे मे लिखना नही चाहते ।

छत्तीसगढ़ के कई गाँव मे पँच और सरपँच निर्विरोध चुने गये है, अगर आप छत्तीसगढ से सँबन्धित समचार मे रूची रखते है तो ऐसे एक नही कई उदाहरण मिल जायेँगे जहाँ छत्तीसगढ़ के गाँवो ने आपसी सहमती से मिलकर अपने पँच और सरपँच चुन लिए । अभनपुर के पास एक गाँव के बारे मे समाचार मे ये बात पढ़ी थी और इसी तरह के कुछ समाचार अम्बिकापुर और बिलासपुर के बारे मे भी पढ़ा था । इस गाँव के बुजुर्गो ने चुनाव के नामाँकन के पहली ही सँभावित उम्मीदवारो के बीच ठीक उसी प्रक्रिया से चुनाव किया जिस तरीके से सरकारी चुनाव होते है । एक डमी चुनाव प्रक्रिया का पालन गाँव के बुजुर्गो की देख रेख मे वैसे ही सम्पन्न हुआ जैसा कि वास्तविक चुनाव मे होता है । इस चुनाव के परिणाम के आधार पर केवल उन्ही प्रतयाशियो ने नामाँकन पत्र दाखिल किया जो पहले के डमी-चुनाव मे विजयी घोषित हुए थे । इस चुनाव प्रक्रिया का अगर गहरायी से अध्ययन करे तो हमे ऐसे तथ्य मिलेँगे जिसके बारे मे हम सोच भी नही सकते । ये कैसे सँभव हुआ कि गाँव के सभी लोगो ने सहमति से बुजुर्गो की बातो पे भरोसा किया ? सामुहिक फैसला कैसे किया गया ? वो कौन सी बाते थी जो इन सामुहिक फैसलो के विरूद्ध लोगो को जाने से रोके रखा ? लोगो के दिमाग मे ये बाते क्योँ आयी कि गाँव मे निर्विरोध चुनाव होना चहिए ? इन निर्विरोध चुनाव का गाँव के सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक स्थितियोँ पर क्या प्रभाव हुआ । इस गाँव मे इस चुनाव की प्रक्रिया जितनी शालीनता से सम्पन्न हुई इसके बारे मे अगर कोइ ईमानदारी से बात करे तो ये गाँव राष्ट्रपति पुरस्कार के अधिकारी होँगे । अभनपुर के इस गाँव के चुनाव प्रक्रिया की विधी को अगर परिष्क़ृत करके दुनिया के सामने प्रस्तुत करे तो छत्तीसगढ़ का ये छोटा सा गाँव दुनिया को लोकतँत्र का वो चेहरा दिखायेगी जिसके बारे मे दुनिया वाले सोंच भी नही सकते । इस चुनावी माडल को अगर हम केवल भारत मे लागू कर सके तो दुनिया मे भूख, भ्रष्टाचार और प्रशासन के दुरूपयोग की बाते इतिहास के पन्नो मे समाहित हो जाये । लेकिन शायद अमन सॆठी साहब जैसे लोग इस माडल की बात करना पसॅँद नही करेँगे क्योँकि अगर छत्तीसगढ़ के एक गाँव के लोकतँत्र-माडल से प्रशासन के दुरूपयोग की बाते दूर हो गयी तो शायद सेठी साहब जैसे लोगो की रोजी – रोटी छीन जाये । मैने आपसी सहमती से चुनाव वाली अधिकाँश बाते केवल इँटरनेट के माध्यम से ही पढी, और अगर आप छत्तीसगढ़ मे रहकर वहाँ के अखबार को खँगाले तो ऐसे कई उदाहरण मिल जायेँगे । मगर ऐसे समाचार पढने के लिए आपको एक सावधानी बरतनी पढेगी और वो ये कि आपको छतीसगढ़ के हिन्दी पत्रिका या समाचार-पत्र पढ़ने पढेँगे । अगर आप अँग्रेजी के समाचार-पत्र मे ये समाचार ढुँढने जायेँगे तो आपको चिराग लेके ढुँढना पडेगा और तब भी ये जरूरी नही है कि आपको इस तरह के समाचार अँग्रेजी अखबारो मे मिले ।

मैँ सीजी-नेट का सक्रिय सदस्य हूँ जहाँ से मुझे छत्तीसगढ़ के बारे मे सारी जानकरी मिलती रहती है । छत्तीसगढ़ के उपर अँग्रेजी मे छपने वाले लगभग सभी महत्वपुर्ण जानकारियाँ मुझे यहाँ से मिल जाती है । पिछले 1 महीने से छत्तीसगढ़ मे पँचायत चुनाव जोरो पर था जिसके बारे मे मुझे छत्तीसगढ़ के समाचार पत्रो से और दुसरे माध्यम से जानकारी मिलती रहती थी । पिछले महीने मैने जितनी बार फोन से बात की (घर वालो से और दोस्तो से) उनमे छतीसगढ़ के पँचायत चुनाव का जिक्र हर बार हुआ है और मेरे हिसाब से ये छत्तीसगढ़ के लिए बहुत ही महत्वपुर्ण घटना थी । लेकिन अँग्रेजी के अखबारो मे कभी इस पँचायत चुनाव के बारे मे समाचार प्रकाशित नही हुआ (कुछ हुआ भी हो तो मेरी नजर मे नही आ पायी या कोइ मेरे साथ कुतर्क करने के लिए एक – दो खबरे ले आये तो मै उन लोगो से माफी चाहूँगा) । मुझे लगा कि छत्तीसगढ़ का पँचायत चुनाव अँग्रेजी अखबारो के लिए महत्वपूर्णॅ नही है । लेकिन पुरे चुनाव होने की बाद कल मैने सीजीनेट पर ये समाचार देखा । मैने जब इस समचार का शीर्षक देखा तो मै प्रसंन्न-चित्त हो गया कि छत्तीसगढ़ के लोगो के उपर अँग्रेजी अखाबारो कि नजर पड़ी । लेकिन मै गलत था । अँग्रेजी अखाबारो कि नजर छत्तीसगढ़ पर पड़ी तो जरूर थी मगर वो गिद्ध – दृष्टी जैसी नजर थी, जिनका केवल एक ही निशाना था कि शिकार को कैसे पकड़ॆ । जिन्हे छत्तीसगढ़ मे अगर कुछ दिखायी दिया था तो वो केवल माँस का टुकडा था जिसे वो नोच-कर चबाकर अपना पेट भरना चाहता था ।

हो सकता कि मै कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा हूँ । मेरी श्री मति जी जो अभी इस लेख को सँपादन के दौरान पढ रही है तो उसे भी लग रहा है कि मै जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा हूँ , लेकिन दोस्तो ये बात सोचने लायक है कि अँग्रेजी अखबार को पुरे पँचायत चुनाव मे देखने को जो मिला वो केवल एक अपवाद्पूर्ण घटना थी जिसका छत्तीसगढ़ के पुरे पँचायत चुनाव से कोइ सम्बन्ध नही था और उस एक घटना को “छत्तीसगढ़ मे अनिवार्य मतदान का तरीका” बता कर दुनिया वालो के सामने परोसा जाए तब ये सवाल पैदा होता है कि ऐसी रिपोर्टिग ने दुनिया के सामने छत्तीसगढ़ का कौन सा स्वरूप प्रस्तूत किया है । और अगर मै ये कहू कि ये समाचार छत्तीसगढ़ का गलत चेहरा प्रस्तूत करता है तो क्या मैँ गलत हूँ ? क्या छत्तीसगढ़ के किसी आदमी का ऐसे गलत तरीके से प्रस्तुत किए गए समाचार पर आक्रोशित होने का हक नही है ? अगर रिपोर्टर अपनी बात कहने के लिए स्वतँत्र है तो क्या एक छत्तीसगढिया को ये कहने का हक नही है कि साहब आपकी गलत बातो से एक छत्तीसगढिया को ठेस पहूँची है ।

Saturday, February 13, 2010

हरू-हरू आता है अव छप ले माढ़ जाता है

 जनम के छतीसगढ़ी गोठियइया मन कभू हिन्दी मे गोठियाय के कोशिस करते तब  " हरू-हरू आता है अव छप ले माढ़ जाता है " ,जइसे शब्द निकलथे ।अव  अइसन कतको एकन किस्सा  सुने मे मिलथे जेला सुनके अब्बड़ हाँसी आथे । ये " हरू-हरू आता है अव छप ले माढ़ जाता है "" वाला किस्सा ल हमर सँगवारी शिवगुलाम द्विवेदी जी ह सुनाय रिहिस हाबे ।  शिवगुलाम द्विवेदी जी ह सेना मे बढ़े ओफिसर हे लेकिन गोठ-बात अव दिल से एकदम छतीसगढ़िया हे । हमर छत्तीसगढ़ी - मया के गोठ मे ये  " हरू-हरू आता है अव छप ले माढ़ जाता है " के बारे मे शिवगुलाम जी लिखथे ...
" अक बार मे ह दिल्ली के इँदिरा गाँधी हवाइ-अडडा मे मेप रीडीँग के कोर्स पढहावत रेहेँव तब देखेँव कि हमर छतीसगढ़ के कुछ छतीसगढ़िया भाइ मन ह हवाइ-अडडा मे जिहाज देखे बर आय हे । उँकर मन के बातचीत से मे ह समझ गेँव कि वो मन ह हमरे डाहर ( राजनादगाँव )  के आदमी हरे । उँकर मन से बातचीत करेँव अव पास से होटल मे चाय पियाय बर लेगेँव । ओतकी बेर दू- तीन ठन  जहाज ह हवाइ अडडा मे उतरिस तेला देख के भय़ँकर खुश होगे । वो उतरत जहाज ल देख के उही मे से एक झन आदमी ह कथे --अरे ददा रे ये जिहाज तो  हरू-हरू आता है अव छप ले माढ़ जाता है ।"
आइसन ढँग से जब आधा छतीसगढ़ी अव आधा हिन्दी ल मिलाके जब कोइ बात निकलथे त सुने मे बढ़ा मजा आथे । हमर छतीसगढ़ के दु झन जोक्कर कलाकार शिवकुमार दीपक अव कमलनारायण सिन्हा जी हरे । ये दुनो कलाकर ह प्रेम चँद्राकर जी कि फिलिम मे कामेडियन के रोल करथे । इँकर मन के प्रस्तूती ल आदमी ह हाँसत हाँसत बइहा जथे । छतीसगढ़ के ये दुनो हास्य कलाकार शिवकुमार दीपक अव कमलनारायण सिन्हा के एक ठन प्रस्तुति आप मन के सामने हे । ये प्रस्तुति मे शिवकुमार दीपक जी सेना के एक मेजर के रोल मे हे अव कमलनारायण सिन्हा जी हबलदार झाड़ुराम के भुमिका मे ।

हास्य प्रस्तुति भाग -1

मेजर साहब – छतीसगढ़ रेजीमेँट परेड़ करायेगा , – छतीसगढ़ रेजीमेँट अटेनसन, अरे तेरे को अटेनसन नही आता
झाड़ुराम - उहुँ
मेजर साहब – अच्छा कोई बात नही बेटा । जिसको अँग्रेजी मे अटेनसन बोलते है , हिन्दी मे सावधान बोलता है उसको छतीसगढ़ी मे बोलेगा रेजीमेँट अकड़ जा । बेटा झाड़ुराम हम तुमको छतीसगढ़ मे परेड़ करायेगा ।
झाड़ुराम – जी साहब
मेजर साहब – जिसको अँग्रेजी मे डिसमिस बोलते है , उसको हिन्दी मे विसर्जन बोलेगा और छतीसगढ़ी मे , रेजीमेँट छरिया जा , अव घुचत –घुचत लहुटो , सबास बेटा , सबास , अब आघु डाहर लहुटो 

हास्य प्रस्तुति भाग -2

मेजर साहब – बेटा झाड़ुराम , छतीसगढ़ रेजीमेँट
झाड़ुराम – जी सर
मेजर साहब – ये क्या जाँग को खसर खसर खजवाता है
झाड़ुराम – मच्छर चाबता है ना

मेजर साहब – अरे हमारा ददा बारडर मे चिनिया सेना से लड़ते-लड़्ते बरफ के उपर आठ-आठ दिन ले ठाड़हे रहा बिन पनही- मोजा के ।

झाड़ुराम – अइसा
मेजर साहब – तभो ले गोड़ को नही हलाया, पाँच ठन अँगरी मे चार ठन अँगरी गल गया , एक ठन अँगठा बाचे रहा, । हमर ददा के छाती सोल ले चार ठन गोली आर पार बुलक दिया , तभो ले हमर ददा नही मरा ।


झाड़ुराम - अइसा हमरो छाती डाहर ले आठ-आठ ठो गोली भुलकेगा हमारा भी इँतकाल नही होगा साहब ।

मेजर साहब – तभी हमर साहब ने बोला तुम्हारे ददा का छाती चेम्मर है । हमने बोला , साहब इही पाय के हमर मुलुक के नाम छाती-गढ़ पढ़ा है ।
झाड़ुराम - ये छातीगड़ है छातीगढ़ 

हास्य प्रस्तुति भाग -3

मेजर साहब – साबाश बेटा झाड़ुराम छतीसगढ़ रेजीमेँट, अब हम तुमको बंदुक चलाना सिखायेगा ।
झाड़ुराम - जी साहब
मेजर साहब – लो अब निसाना मारो , नाक को मारना मतलब फुनगी नाक को, दांत को मारना मतलब दांत को

झाड़ुराम – मार दों ( बंदुक ल मेजर साहब ड़ाहार टेका के )
मेजर साहब – अरे बेटा मेरे को नही बेटा, दुशमन के नाक को मारना है, दुशमन के दांत को उड़ाना है ।
झाड़ुराम – अरे साहब जब आपके ददा के छाती सोल ले चार- चार ठन गोली आर-पार बुलक दिया और आपके ददा का इंतकाल नही हुआ तो आपके छाती सोल ले बुलक देगा तो क्या आपका इंतकाल हो जायेगा । एक गोली साहब ।
मेजर साहब – अरे नही बेटा ।

झाड़ुराम – एक गोली साहब- एक गोली ।
मेजर साहब – अकड़ जा (झाड़ुराम के बइहापना ल देख के मेजर ह आर्डर दे देथे )
मेजर साहब – लेड़झंग पड़ जा , अकड़ जा , पीछु ड़ाहर मुहु करो अव रकसहु ड़ाहर तेड़गा देखत आघु ड़ाहार घुचो ।
( दुनो कोइ परेड़ करें बर धर लेथे )
मेजर साहब – डॆरी जेवनी – डेरी जेवनी , अरे आघु मे मत आ गिर जबे रे ।
( दुनो कोइ हड़बड़ा के गिर जथे )

Saturday, February 06, 2010

करेला असन करू होगे का ओ तोर मया

छत्तीसगढ़ सँगीत ह कर्मा गीत के बिना अधूरा हे । एक ठन बहुँत पुराना कर्मा गीत के सुरता आवत हे । ये गाना ह मोला बहुँत पसँद हे ।

करेला असन करू होगे का ओ तोर मया
ये सनानना करेला असन करू होगे य मोर मया
करेला असन करू होगे का ओ, करेला असन करू होगे का य मोर मया
ये सनानना करेला असन करू होगे य मोर मया

हाय रे तिवरा के ड़ार , टुरी तेल के बघार
ये गजब लागे वो गजब लागे
ये गजब लागे सँगी , जेमा मिरचा मारे झार
गजब लागे,
ये सनानना करेला असन करू होगे य तोर मया

हाय रे धनिया के पान, मिरी बँगाला मितान
गजब लागे वो , गजब लाबे
ये गजब लागे वो ये गजब लागे
ये गजब लागे सँगी , जेमा मिरी के बरदान
गजब लागे,
ये सनानना करेला असन करू होगे य तोर मया

हाय रे जिल्लो के भाजी, खाय बर डौकी डौका राजी
ये गजब लागे वो गजब लागे
ये गजब लागे सँगी , जेमा सुकसी मारे बाजी
गजब लागे,
ये सनानना करेला असन करू होगे य तोर मया

Wednesday, September 17, 2008

बाबु लेड़गा रे

डाँ निरूपमा शर्मा के ये कविता ल कब अव कइसे लिखिस ते घटना बडा दिलचस्प हे । डा निरूपमा शर्मा ह एक बार आकाशवाणी के कवि सम्मेलन मे रामेश्वर वैष्णव जी के कविता सुनीस जेकर शीर्षक रीहिस " नोनी बेँदरी " । ये कविता ल सुनके निरूपमा वर्मा जी ल ये कविता ह लडकी मन के अपमान लगिस अव ये कविता के जवाब दे बर " बाबु लेडगा" लिख डरेस । डा निरूपमा वर्मा के कहना हे कि इहीँचे से मोर मँच स्तर के छतीसगढी कविता लिखे के शुरूवात करेँव ।



बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा
रद्दा बताथँव मे , तोला चेताथँव ,
घेरी-बेरी चलथस ते टेड़गा, टेडगा, टेड़गा
बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा

भलवा असन ते चुँदी बढ़ायेस, नोंनी घलो मन ल ते लजायेस
छिटही –बुँदही के पोलखा पहिर के, बनके बेँदरा गली मे ते नाचे
नवा बटम के लँहगा ल पहिरे , माते झुमे जैसे खेड़हा, खेड़हा, खेड़हा
बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा

कतको बनले सम्हर ले तै छोकरा, ठकुर दइया के छुट्टा तै बोकरा
जिनिस –जिनिस के खाये तभोले, कोरी तीन के दिखतस ते डोकरा
कुकुर ह अपन पुछी ल सहराथे, जब रइँहय तब रइँहय टेड़गा टेड़गा टेड़गा
बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा रे, बाबु लेड़गा

कभु अपन ल धर्मेद्न कैथस, कभी बोली अमजद के बोलथस
बिन बुता के गली मे किजरथस, दाइ बहनी ल निटोरत रइथस
सँझा बिहानिया ते रँग ल बदलथस, जैसे बदलथे ग टेटका टेटका टेटका
बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा

कब सुरूज असन ते चमकबे, दाइ बहिनी के मान ल बढाबे
घर आदमी के मन मे बनाबे, बनके मया अजोँर छरियाबे
सबके करमनार बर ते ह बनजा , बिन मुर जर के गा ड़ेखरा डेखरा डेखरा
बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा
रद्दा बताथँव मे , तोला चेताथव मे, घेरी-बेरी चलथस ते टेड़गा, टेडगा, टेड़गा
बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा रे , बाबु लेडगा

कवियित्री : डा निरुपमा शर्मा

Monday, August 25, 2008

फोकट के बिजली ल तोरे घर मे राख

छतीसगढ़ काँग्रेस के प्रभारी नारायण सामी के कहना हे कि अगर छतीसगढ मे काँग्रेस के शासन आही ते किसान मन ल फोकट मे बिजली दिही । हमन ह दिगविजय सिँग के फोकट के बिजली के तमशा ल देख डरे हे अव जानथन कि “ फोकट ले पाय ते मरत ले खाय “ बरोबर फोकट के चीज ह नइ पचे । दिग्विजय सिँह के सरकार फ फोकट मे बिजली देबो केहे रिहिस त हमन भारी खुश होय रेहे हाबन कि अब मोटर ले चौबीसो घँटा चला के अपन खेत ल पलो ले लेकिन एक साल के अँदर ये फोकट के बिजली के नशा ह उतर गे । दिन भर मुश्किल ल 6-8 घँटा बिजली ताहन दिन भर मोटर बँद । अब पलो ले पानी ल 24 घँटा ? यहू 6-8 घँटा के बिजली ह सल्लग नइ रहाय , कतका बेर आय अव कतका बेर जाय तेकर ठिकाना नही । अइसन मे किसान ह काकरही, दिन भर “ बिलइ ताके मुसवा भाँड़ी ले सपट के बिलइ ताके “ बरोबर मोटर के आघु मे बैठे रा अव जब – जब बिजली आय तब मोटर के बटन ल चपकत र । तब ले देके पानी ल पलोय सकन । जब धान के पाकती आय अव जे समय पानी के एक्दम जरूरत राहय ते समय ते रात भर जगवारी जागेल लागे । रात मे घेरी-बेरी बिजली गोल अव मोटर बँद । रात भर उठ-उठ के देखेल लागे कि मोटर तो बँद नइ हो गेहे । अब तो खैर आटो-स्टार्ट मोटर आगे हे जे ह अपने – अपन बिजली आथे ताहन मोटर ल चालु कर देथे लेकिन ओ समय मे ये सिस्टम ह नइ रिहिस हे । मोला नइ पता कि आटो-स्टार्ट सिसटम ह कानूनी रूप से वैद्य हे कि नही लेकिन आजकल सब मोटर –पँप वाला मन आटो-स्टार्ट लगा डरे हे । लेकिन येकरो बहुँत नुकसान हे , सब के मोटर एक सँघरा शुरू होइस ताहन ट्राँसफार्मर ह दाँत निपोर देथे । येकरे सेती अब तो अइसन झँझट-फटफट ल देख के फोकट के बिजली के नामे ल सुन के घुरघुरासी लागेल धर ले हे , अव अब फेर काँग्रेस वाला मन ओकर खिलौना देके के लुलवायल धरत हे ।
हमन तोर पाँव परत हन भगवान ते ह हमन ल फोकट के बिजली ल झन दे । हमन ल दिन मे 24 घँटा बिजली चाहिए न कि फोकट के बिजली । हमन ह बिजली बिल के पैसा ल पटा डरबो लेकिन फोकट के बिजली के नाम मे कहुँ 2-4 घँटा के बिजली देबे तब त हमर मन के साँस चलत हे तहु ह अटक जही । काँग्रेस पारटी ल ये बात समझ मे आ जाना चाहिए कि फ़ोकट के बिजली के सपना ह अब किसान मन ल नइ लुलवायल सके । हाँ अगर काँग्रेस पारटी ह चौबीसो घँटा बिजली देबो कहिके कही त किसान मन जरूर येकर स्वागत करही । आज के समय ह 24 घँटा के बिजली के वादा करे के हे न कि फोकट के बिजली के वादा करेके । काँग्रेस पारटी ह अपन ये गलती ल जतका जल्दी सुधारही ओतका जादा फायदा मे रही नही ते फोकट के बिजली के वादा ह खुद उँकरे जी के जँजाल बनही ।